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Siraj Dehlvi
 
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SIRAJ DEHLVI : Khuli Aankhon Ka Yun Bhi Khwab Ik Tabeer Karna Hai
        
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ग़ज़ल खुली आँखों का यूँ भी ख्व़ाब इक ताबीर करना है., 
मुकद्दर अपना अपने अज्म से तहरीर करना है,, 
तआल्लुक़ तो मेरा शाही घराने से नहीं फिर भी., 
तमान्नाओं को अपनी बे-बहा जागीर करना है,, 
मैं शायर हूँ मेरा अदबी फ़रीज़ा और मकसद भी,,
पयामे अम्न की हर हाल तश्हीर करना है., 
अन्धेरा सर पटकता ही रहे ज़ुल्मत के सीने पर.,, 
कुछ ऐसा काम अब तो बाइसे-तन्वीर करना है,, 
दवा के नाम पर जो ज़हर हम पीते चले आये., 
उसे अब मर्जे दिल के वास्ते इक्सीर करना है,, 
हमेशा से मुहब्बत का लहू चाहती हैं शमशीरें., 
हमें फिर आज सीना जानिबे शमशीर करना है,, 
हमें ख़ुद ए सिराज एक रोज़ अस्लूबे-मुहब्बत से., 
ज़मीं तख़लीक़ करनी है, फ़लक तामीर करना है...! 
सिराज देहलवी@ओ.पी.अग्रवाल 
 
Comments


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  • Jawaid Mahmood
    01-03-2015 13:45:07
    WAAH BAHUT KHOOB KAHA HAI AAPNE SIRAJ DEHLVI SAHEB
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