ग़ज़ल ..
जो कर ना सका कोई वो कर के दिखाओ तो,
दुश्मन को भी सीने से तुम अपने लगाओ तो,,
क्या हौसला रखते हो पहले ये बताओ तो,
"मंज़िल तो मिलेगी ही तुम पाँव बढाओ तो",,
मंज़िल के निशाँ तुम को हर सू नज़र आयेगें,
नफरत के अंधेरों में तुम शम्मा जलाओ तो,,
हर शख्स तुम्हें बेशक अपना नज़र आएगा,
सीने से कदूरत को तुम पहले मिटाओ तो,,
नफरत की फ़ज़ाओं में बस इसकी ज़रूरत है,
हाँ इश्क़-ओ-मोहब्बत के तुम फूल खिलाओ तो,,
जो तुम से खफा है वो अपना नज़र आएगा,
जो रिश्ता-ए-उल्फ़त है तुम उस को निभाओ तो,,
हर वक़्त तुम्हें रब का जलवा नज़र आएगा,
तुम दिल को ‘सिराज’ अपने आईना बनाओ तो....!
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