ग़ज़ल
हर किरण उस की निगाहों में सुहानी हो गई,
धूप खेतों से उतर कर ज़ाफरानी हो गई,,
अब खुशी की याद भी दिल में मेरे आती नहीं,
मेरी गुरबत आज कल मुझ पर दीवानी हो गई,,
तब खुदा की याद आई आज के इंसान को,
उस पे नाज़िल जब बलाये आसमानी हो गई,,
शहर में उर्यानियत अब बढ़ गई है किस क़दर,
शर्म से ग़ैरत भी जैसे पानी पानी हो गई,,
वो किसी भी बात की परवा नहीं करती कभी,
कितनी बे परवा सनम तेरी जवानी हो गई,,
सख्त राहों पर बा आज़्म-ओ-शौक़ जो चलता रहा,,
दोस्तो हासिल उसी को कामरानी हो गई,,
उस की याद आई तो हालत ये हुई दिल की ‘सिराज’,
आँसूओं की तेज़ आँखों में रवानी हो गई...!
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