खुदी बे-खुदी अब मयस्सर नहीं है
कहीं ज़िंदगी अब मयस्सर नहीं है,,
जो शम्मा जलाता था हर रहगुज़र पे,
उसे रौशनी अब मयस्सर नहीं है,,
सदा जो खुशी बांट ता था जहाँ में,
उसी को खुशी अब मयस्सर नहीं है,,
ग़मों के अंधेरों में तन्हा हूँ हमदम,
तेरी दोस्ती अब मयस्सर नहीं है,,
जहाँ तेरा दीदार होता था पैहम,
मुझे वो गली अब मयस्सर नहीं है,,
क़रार आये कैसे भला मेरे दिल को,
कहीं दिलबरी अब मयस्सर नहीं है,,
सिरजे हाजीं अब कहाँ जाइएगा,
कहीं दिलकशी अब मयस्सर नहीं है...!
|