ग़ज़ल..
जो अधूरी थी मुकम्मल वो कहानी हो गई.,
मौसमों का रंग बदला रूत सुहानी हो गई,,
काम हिम्मत से लिया जिस ने भी राहे शौक़ में.,
उस को ही हासिल जहाँ में कामरनी हो गई,,
आस का दीपक किसी भी दिल के गोशे में नहीं.,
किस क़दर मजबूर अब ये ज़िन्दगानी हो गई,,
उस से मिलने की खुशी मैं क्या बताऊँ दोस्तो.,
जब देख उस को हासिल शादमानी हो गई,,
उस की चाहत मेरे इस दिल से निकल सकती नहीं.,
याद हर एक बात उस की मुंह ज़बानी हो गई,,
नाज़ वो अपने मुक़द्दर पर ना अब कैसे करे.,
जिस को हासिल उस की चाहत की निशानी हो गई,,
आज कल मुंह फेर कर चलते हैं वो मुझ से.,
सिराज ऐसा लगता है मुझ से सर गिरानी हो गई...! |