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Ana Qasmi
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Biography of Ana Qasmi
--: Shayari by Ana Qasmi :--
Total Shayari of Ana Qasmi : 32
ये अपना मिलन जैसे इक शाम का मंज़र ह
यूँ इस दिले नादाँ से रिश्तों का भर
ख़बर है दोनों को दोनों से दिल लगाऊ
कभी वो शोख़ मेरे दिल की अंजुमन तक आ
ये फ़ासले भी, सात समन्दर से कम नहीं,
बहुत वीरान लगता है, तिरी चिलमन का स
माने जो कोई बात, तो इक बात बहुत है,
कभी हाँ कुछ, मेरे भी शेर पैकर1 में रह&
खैंची लबों ने आह कि सीने पे आया हाथ
ख़बर है दोनों को दोनों से दिल लगाऊ
चलो जाओ ,हटो कर लो तुम्हें जो वार कर
कैसा रिश्ता है इस मकान के साथ
कुछ चलेगा जनाब, कुछ भी नहीं
कभी हाँ कुछ, मेरे भी शेर पैकर में रह
छू जाए दिल को ऐसा कोई फ़न अभी कहाँ
जाने क्या दुश्मनी है शाम के साथ
जो ज़बाँ से लगती है वो कभी नहीं जात
कभी वो शोख़ मेरे दिल की अंजुमन तक आ
उससे कहना कि कमाई के न चक्कर में रह
उसको नम्बर देके मेरी और उलझन बढ़ ग
तेरी इन आंखों के इशारे पागल हैं
उस क़ादरे-मुतलक़ से बग़ावत भी बहुê
उल्फ़त का फिर मन है बाबा
आराइशे-खुर्शीदो-क़मर किसके लिए है
आप इस छोटे से फ़ितने को जवां होने त
अब हलो हाय में ही बात हुआ करती है
अक्सर मिलना ऐसा हुआ बस
पैसा तो ख़ुशामद में, मेरे यार बहुत
दिल की हर धड़कन है बत्तिस मील में ।
फ़न तलाशे है दहकते हुए जज़्बात का
बचा ही क्या है हयात में अब सुनहरे द
बचा ही क्या है हयात में अब सुनहरे द
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