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Jigar Moradabadi
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Design Poetry of Jigar Moradabadi
Biography of Jigar Moradabadi
--: Shayari by Jigar Moradabadi :--
Total Shayari of Jigar Moradabadi : 101
Dard barh Ker Fughan'n Na ho jaye
जो ज़ीस्त को न समझे जो मौत को न जाने
ये हुजूमे-ग़म ये अन्दोहो-मुसीबत दí
ये सब्जमंद-ए-चमन है जो लहलहा ना सके
आई जब उनकी याद तो आती चली गई
यादे-जानाँ भी अजब रूह-फ़ज़ा आती है
यही है सबसे बढ़कर महरमे-असरार हो ज
मुझे दे रहे हैं तसल्लियाँ वो हर एक
मर के भी कब तक निगाहे-शौक़ को रुस्व
तौहीने-इश्क़ देख न हो ऐ ‘ जिगर’ न हो
लेकिन "ज़िगर" का नाम न आये
मुद्दत में वो फिर ताज़ा मुलाक़ात è
पाँव उठ सकते नहीं मंज़िले -जानाँ क
फ़ुर्सत कहाँ कि छेड़ करें आसमाँ सí
बराबर से बचकर गुज़र जाने वाले
मोहब्बत में क्या-क्या मुक़ाम आ रहí
मुमकिन नहीं कि जज़्बा-ए-दिल कारगर
बुझी हुई शमा का धुआँ हूँ और अपने मर
साक़ी की हर निगाह पे बल खा के पी गया
शायर-ए-फ़ितरत हूँ मैं जब फ़िक्र फ़
वो काफ़िर आशना ना-आश्ना यूँ भी है औ
निगाहों से छुप कर कहाँ जाइएगा
न ताबे-मस्ती न होशे-हस्ती कि शुक्र
दिल में तुम हो नज़अ का हंगाम है
दिले हजीं की तमन्ना दिले-हजीं में
निगाहों का मर्कज़ बना जा रहा हूँ
नियाज़-ओ-नाज़ के झगड़े मिटाये जातí
फ़र्द-ए-अमल सियाह किये जा रहा हूँ म
दुनिया के सितम याद ना अपनी हि वफ़ा
कहाँ से बढ़के पहुँचे हैं कहाँ तक इ
दिल को जब दिल से राह होती है
दिल गया रौनक-ए-हयात गई ।
दिल को मिटा के दाग़े-तमन्ना दिया म
तेरी खुशी से अगर गम में भी खुशी न हु
दास्तान-ए-ग़म-ए-दिल उनको सुनाई न गई
दर्द बढ़ कर फुगाँ ना हो जाये
न जाँ दिल बनेगी न दिल जान होगा
वो अदाए-दिलबरी हो कि नवाए-आशिक़ानì
तुझी से इब्तदा है तू ही इक दिन इंतह
तबीयत इन दिनों बेगा़ना-ए-ग़म होती
ज़र्रों से बातें करते हैं दीवारोद
जान कर मिन-जुमला-ऐ-खासाना-ऐ-मैखाना
लाखों में इंतिख़ाब के क़ाबिल बना ê
जह्ले-ख़िरद ने दिन ये दिखाए
काम आख़िर जज़्बा-ए-बेइख़्तियार आ ì
कहाँ से बढ़कर पहुँचे हैं कहाँ तक इ
कुछ इस अदा से आज वो पहलू-नशीं रहे
कहाँ वो शोख़, मुलाक़ात ख़ुद से भी न
कामिल रेहबर क़ातिल रेहज़न
कब तक आख़िर मुश्किलाते-शौक़ आसाँ è
कभी शाख़-ओ-सब्ज़-ओ-बर्ग पर कभी ग़ुँ
ओस पदे बहार पर आग लगे कनार में
इश्क़ लामहदूद जब तक रहनुमा होता नì
इस इश्क़ के हाथों से हर-गिज़ नामाफ
इश्क़ में लाजवाब हैं हम लोग
इसी चमन में ही हमारा भी इक ज़माना थ
इश्क़ फ़ना का नाम है इश्क़ में ज़ि
इश्क़ को बे-नक़ाब होना था
इक लफ़्ज़े-मोहब्बत का अदना ये फ़सì
आँखों में बस के दिल में समा कर चले ग
अगर न ज़ोहरा जबीनों के दरमियाँ गुé
आदमी आदमी से मिलता है
कोई ये कह दे गुलशन गुलशन
सोज़ में भी वही इक नग़्मा है जो साज
हमको मिटा सके ये ज़माने में दम नही
हर दम दुआएँ देना हर लम्हा आहें भरन
हर सू दिखाई देते हैं वो जलवागर2 मुझ
हाँ किस को है मयस्सर ये काम कर गुज़
आ कि तुझ बिन इस तरह ऐ दोस्त! घबराता ह&
इश्क़ की दास्तान है प्यारे
आँखों का था क़ुसूर न दिल का क़ुसूर
अल्लाह अगर तौफ़ीक़ न दे इन्सान के
अब तो यह भी नहीं रहा अहसास
یہ صحن وروش، یہ لالہ وگل، ہونے دو ج
یہ صحن وروش، یہ لالہ وگل، ہونے دو ج
اب مجھ کو نہیں کچھ بھی محبت کے سوا ی
ہم مگر سادگی کے مارے ہیں
تو پھر یہ کیسے کٹے زندگی کہاں گزرے
تو خوش ہے کہ تجھ کو حاصل ہیں ، میں خو
دنیا کے ستم یاد نہ اپنی ہی وفا یاد
سب ہی اندازِ حسن پیارے ہیں
عشق لا محدود جب تک رہنما ہوتا نہیں
اگر نہ زہرہ جبینوں کے درمیاں گزرے
یہ صحن وروش، یہ لالہ وگل، ہونے دو ج
یہ مَے خانہ ہے بزمِ جم نہیں ہے
کوئی یہ کہہ دے گلشن گلشن
Muddat meiN wo phir taaza mulaqaat ka aalam
Bujhii huii shamaa kaa dhuaa.N huu.N aur apne markaz ko jaa rahaa huu.N
Baraabar se bachkar guzar jaane vaale
Agar na zohraa jabiino.n ke daramiyaa.N guzre
Aa.Nkho.n me.n bas ke dil me.n samaa kar chale gaye
Ye sabzah’mand-e-chaman hai jo lah’lahaa na sake,
Tabiiyat in dinoN be-gaana-e-Gham hotii jaatii hai,
Gham-e-yaar hai meraa shefataa mai’n farefataa Gham-e-yaar
Mujhe de rahe’n hai’n tasalliyaa’n vo har ek taazaa payaam se
Muddat me’n vo phir taazaa mulaaqaat kaa aalam
Tujhii se ibtadaa hai tuu hii ik din intahaa hogaa
Saaqii par ilzaam na aaye
Haa’n kis ko hai mayassar ye kaam kar guzarnaa
Dil ko jab dil se raah hotii hai
Aadmii aadmii se miltaa hai
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