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Ramesh Kanwal
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Biography of Ramesh Kanwal
--: Shayari by Ramesh Kanwal :--
Total Shayari of Ramesh Kanwal : 108
غریب لوگوں کی جاں کا معاوضہ کیا ہے
خدا کے در پہ میں اپنی عبادتیں رکھ
جرم کا اقرار کر لوں مجھکو ہمّت ہو &
मेरी सदाओं का सूरज बुझा बुझा सा था
हो गये सावन गीत मेरे जख़्मी, घायल
रूठ गर्इ तू जब से 'सावन' रूठ गर्इ ह
सावन आया, तुम नहीं आये, नैन बन गये सा
हर पल संवरने सजने की प़फुरसत नहीं
एक औरत ही आदम की तकदीर थी
अपने अपने कान बंधक रख दो, आंखें फोड
हुस्न है दिलकश तबाही इश्क़ को मंजí
क्या कशिश थी तेरे बहाने में
सामने तुम हो, सामने हम है, बीच में शी&
बांहो में समुन्दर के दरिया का सिमé
दिल की दुनिया हो गर्इ जे़रो-ज़बर1
उमीदों की बस्ती सजी, तुम न आये
तुम ही कहो बढ़ जाती है क्यों बरसात
जब तेरी बंदगी नहीं होती
हर दम दिल के आंगन मे ली गम ने ही अंगड&
झूमती हर सुबह की ख्ूा में नहार्इ श
जुर्म है इश्क़ तो हां इसका ख़्ाताë
सर्द है रात, सुलगती हुर्इ तन्हार्ç
आज भी मेरा दामन खाली, आज भी दिल वीरा
वो रूख़्ो-शादाब है और कुछ नहीं
ख़्वाबों के दरीचों से न अब रूप दिख
पैरों में मेरे फर्ज की जं़जीर पड़ì
मै शहर मे पत्थर के हूं इक पैकरे-जज़
हर आदमी दुख दर्द में ग़लतां1 नज़र आ
ग़म तेरा मुझे अपनों का अहसास दिलाë
जब ज़ुल्फ़ तेरी मुझ पे बिखरती नज़ë
जब भी मिलता है कोर्इ शख़्स अकेला म
काबे से निकल के भी हैं इक काबे के अं
पहूंच इक मुश्ते-खाकी1 की सितारों क
जामो-सुबू1 यूं ही नहीं ठुकराये हुय
जब भी मैं उससे मिलने की लेकर दुआ गय
पत्थरों को आइना दिखला रहा है कोर्ç
टूटे हुये तारे का मुक़íर हूं सद1 अफ़
उभरेगा कभी जो है अभी डूबता चेहरा
उलझनों की आंच में तपकर पयम्बर1 बन ग
है बात जब कि जलती फ़ज़ा1 में कोर्इ च
तन की ख़्वाहिश मन की लगन को सू-ए-हवस1
तुझे मैं ख्वाबों का अलबम दिखा नहीæ
सहमी सहमी हुर्इ तस्वीर लिये बैठे ì
रोज़ डूबे हुये सूरज को उगा देती है
काविर्शो1 का काफि़ला2 उनकी नवाजि़
ना-कर्दा गुनाहों की सज़ा काट रहे ह
मेरी सदाओं का सूरज बुझा बुझा सा
मये-गुलरंग1 का क़सूर नहीं
जब से वह हो गर्इ इक छैल छबीले से अलग
वह जो लगता था पयम्बर इक दिन
मुक़र1 का सूरज घटाओं में था
आस्मां से छिन गया जब चांद तारों का
हरी पत्तियों पर फिसलती रही
किसी की आंखों में बेहद हसीन मंज़र
ग़म बिछड़ने का नयन सहने लगे
सुनहरी यादों के जंगल में खो गर्इ ह
लिबासे- जि़ंदादिली1 तार तार था कित
जोबन के दरीचो पे कोर्इ परदा नहीं थ
जुनं की वादियों से दिल को लौटाना भ
ऐ यार मेरे हिज्र के जंगल को जला दे
अगरचे मुझको समर्पित किसी का यौवन ê
बिखरी हुर्इ हयात1 से सिमटे लिबास थ
नुक़्रर्इ1 उजाले पर सुरमर्इ अंधेर
आओ तुम आकर बसा दो मेरे ख़्वाबों के
रंजिशे उभरीं तअल्लुक़1 के सभी दर
इक हवेली में बैचैन थे बामो-दर1
जल गये याद के बामो-दर धूप में
आस्थाओं का मुसाफि़र खो गया
लम्स1 की आंधियों से जो डर जायेंगे
गुज़़रे मौसम का पता सुर्ख़ लबों1 प
क़ुरबत की तलिख़् यों से पिघलने लगì
बल खाती मछलियां हैं, सफ़र चांदनी क
ज़ख़्म पर ज़ख़्म वह नया देगा
जि़ंदगी इन दिनों उदास कहा
उलझनों के गांव में दुश्वारियों क&
अपनी खुशियाँ सभी निसार करूँ
जिंदगी नाहक उदासी भर नहीं
दिन को दिन लिखना रात मत लिखना
तुझसे मैं मुझसे आशना तुम हो
नाम हूँ मैं मेरा पता तुम हो
रहबरे - क़ौम, रहनुमा तुम हो
फूल को खुशबु, सितारों को गगन हासिल
इक नशा सा ज़हन पर छाने लगा
तू उधर था, इधर हो गया
ख़्बसूरत लगा चांद कल
मुस्कराउंगा, गुनगुनाउंगा
जुनू हूं, आशिकी हूं
آسماں سے چھِن گیا جب چاند تاروں کا
کسی کی آنکھوں میں بے حد حسین منظر ت
Pahunch Ek Mushte-Khaki ki sitaro’n ke jaha’n tak hai
Ubhre ga Kabhi jo hai abhi doobta chehra
Nakarda gunaho’n ki saza kat rahe hai’n
Meri sadao’n ka suraj bujha-bujha sa tha
Ek nasha sa jaha’n par chhane laga
Tu udhar tha, idhar ho gaya
Khubsurat laga chand kal
Jal gaye yaad ke baam o dar dhoop mei’n
Jab zulf teri mujh pe bikharti nazar aaye
Junoo’n ki wadiyo’n se dil ko lautana bhi mushkil hai
Sard hai raat sulagti huee tanhayee hai
Har aadmi dukh dard me’n galta’n nazar aayaa
Har dam dil ke aa’ngan me lee gham ne hi angrhayee
Gham bichharne ka nain sahne lage
Ummeedo’n ki basti saji tum na aaye
Sunahri yaado’n ke jangal me’n khogayee hogi
Jab teri bandagi nahei’n hoti
Lams ki aandhiyo’n se jo dar jayenge
Kisi ki aankho'n mei'n behad haseen manzer thaa
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