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Zia Zameer
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--: Shayari by Zia Zameer :--
Total Shayari of Zia Zameer : 20
ज़र्द पत्ते थे, हमें और क्या कर जान
ना-अह्ल को मसनद से उठा क्यों न दिया
दुशमन-ए-जाँ है मगर जान से प्यारा भी
इस पहेली का कोई तू ही बता हल जानाँ
बात कहूँ मैं यार सुन गर तू दे अधिका
रूठ जाएँ न कहीं हम को मना ले दुनिया
अब तो आते हैं सभी दिल को दुखाने वाल
किसी को क्या पता जो महफ़िलों की जा
इश्क़ से तेरे मेरे ज़ह्न के जुगनू
माहिये / 'ज़िया' ज़मीर
अना की चादर उतार फेंके मोहब्बतों è
कॉफ़ी में अब भाप नहीं है ।
शेर हो कैसे बे-नज़ीर कोई
रंग तितली के खिले रुत भी सुहानी आई
बहार जो कि उधर है, ज़रा इधर आए
देखी नहीं सुनी नहीं ऐसी वफ़ा कि या
तू अमीरे शह्र है, तू मोहतरम अपनी जग
अजब लड़की है वो लड़की
ज़िन्दगी से थकी-थकी हो क्या
कुछ लोग यहाँ मंज़िलें पाने के लिए
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