मैं तुम्हे कैसे बताऊँ....?
मैं तुम्हे कैसे बताऊँ....?
मैं तुम्हे कैसे बताऊँ....?
मैं तुम्हे कैसे बताऊँ....?
मैं तुम्हे कैसे बताऊँ तुमको हर पल याद करना आज भी आदत है मेरी,
मैं तुम्हे कैसे बताऊँ
मैं तुम्हे कैसे बताऊँ आज भी तेरी डगर पर ही लगी है नज़र मेरी,
मैं तुम्हे कैसे बताऊँ....?
मैं तुम्हे कैसे बताऊँ कि तुम्हारी वो हँसी अब तक न भूली नज़र मेरी।
मैं तुम्हे कैसे बताऊँ....?
मैं तुम्हे कैसे बताऊँ आज भी हर लड़खड़ाहट ढूढ़ती है हाथ तेरा,
मैं तुम्हे कैसे बताऊँ तुम गयी तो जिंदगी में छा गया है बस अंधेरा..!
मैं तुम्हे कैसे बताऊँ....?
मैं तुम्हे कैसे बताऊँ भीड़ में इतनी, अकेलापन डरा देता है मुझको,
और घबरा कर बढ़ा देता हूँ मैं ये हाथ मेरा,
काश तुम इसको पकड़ लो और सहारा दे के बोलो,
"मै तो हूँ न साथ तेरे क्या करेगा ये अँधेरा ?"
मैं तुम्हे कैसे बताऊँ , कि अचानक दिल है करता भाग कर तुमको पकड़ लूँ,
अपने सिर की कसम दे के तुझको जकड़ लूँ।
सामने तुझको बिठाकर ,
तेरे हाथों को पकड़ कर,
फूट कर मैं खूब रो लूँ
इतने दिन से मेरे दिल ने,
दाग जितने खुद में पाले,
आँसुओ में सभी धो लूँ
मैं तुम्हे कैसे बताऊँ....?
मैं तुम्हे कैसे बताऊँ कि महज उन्माद ही तो प्यार का मतलब नही है,
नेह का ही एक पहलू ही तो ये विषाद भी है...!
मैं तुम्हे कैसे बताऊँ ....?
मैं तुम्हे कैसे बताऊँ कि महज तुम में नही है नेह की ये भावना,
बस ढिंढोरा पीटने का अर्थ है क्या चाहना....?
आरती और शंख के संग तुम बुलाते देव को हो,
मौन मंत्रों को मगर कहते नही क्या साधना..?
मैं तुम्हें कैसे बताऊँ....?और बताऊँ भी तो क्यों...?
क्यों भला शबदों की दासी बने मेरी भावना..?
मैं तुम्हे क्यों कर बताऊँ और भला कैसे बताऊँ
मैं तुम्हे कैसे बताऊँ ....? मैं तुम्हे कैसे बताऊँ ....?
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