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Abhishek Shukla
 
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* है अगर ईश्क तो आँखो में उतर आने दे । *

चाहे मेरी चाहत को मोहब्बत का नाम ना दे,
पर अपने रुप तूफ़ान में बिखर जाने से ना रोक मुझे,
हर शाम भींगी रहे तेरे शबनम से कसम,
एक बार सही प्यार से देख मुझे ।


थम के रह गई है जो एक झनक तनहा,
अपने चाल की ताल पे फ़िर से थिरक जाने दे,
शर्म की पनाह से निकल कर ईश्क को लेने दो अँगड़ाईयाँ,
अपने जजबात को हालात से टकरा जाने दे ।

रहतीं हैं सलामत जहाँ प्यार की निशानियाँ सभी,
मेरी बेकरारियों को अपने दिल में ठहर जाने दे,
खुद को यूँ ना दो तुम सजा मुझसे नफ़रत करके’
है अगर ईश्क तो आँखो में उतर आने दे ।
है अगर ईश्क तो आँखो में उतर आने दे ।
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