* कर के बेदर्द ज माने के हवाले मुझ को *
गज़ल
डाक्टर फरियाद ''आज र''
कर के बेदर्द ज माने के हवाले मुझ को
भूल जाना न मेरे चाहने वाले मुझ को
मैं बदल जाउं न तेरी ही तरह आखिरकार
अब भी है वक् त मेरे दोस्त मना ले मुझ को
और कुछ देर में हो जाएगा सूरज का ज वाल
और कुछ देर का मेहमां हूं, सता ले मुझ को
कुछ भी पर्वा नहीं दुनिया के सितम की लेकिन
बेरुखी तेरी कहीं मार न डाले मुझ को
इस से पहले कि चुरा ले कोइ तितली खुशबू
शाख से तोड के ज ज़ुलफों में सजा ले मुझ को
तेरा एहसान कि दुनिया को बनाया तू ने
इक करम और कि दुनिया से उठाले मुझ को
कोइ इनसानों की बस्ती का पता दे ''आज र''
कोइ पत्थर की गुफाओं से निकाले मुझ को
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