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Munawwar Rana
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Biography of Munawwar Rana
--: Shayari by Munawwar Rana :--
Total Shayari of Munawwar Rana : 34
ہاں اجازت ہے اگر کوئی کہانی اور ہے
हाँ इजाज़त है अगर कोई कहानी और है
मेरी ख़्वाहिश है कि फिर से मैं फ़र
मुहाजिर हैं मगर हम एक दुनिया छोड़
ऐन ख़्वाहिश के मुताबिक सब उसी को म
यह एहतराम तो करना ज़रूर पड़ता है
बिछड़ा कहाँ है भाई हमारा सफ़र में
कई घरों को निगलने के बाद आती है
बहुत पानी बरसता है तो मिट्टी बैठ ज
जब कभी धूप की शिद्दत ने सताया मुझक
थकी-मांदी हुई बेचारियाँ आराम करती
मेरी ख़्वाहिश है कि फिर से मैं फ़र
न पे हो जाती है ‘राना’ साहिब
ये हौसला है जो मुझसे उख़ाब डरते है
एक आँगन में दो आँगन हो जाते हैं
जो उसने लिक्खे थे ख़त कापियों में
फ़रिश्ते आके उनके जिस्म पर ख़ुश्ब
मुफ़लिसी पास-ए-शराफ़त नहीं रहने दí
जिस्म का बरसों पुराना ये खँडर गिर
मेरे कमरे में अँधेरा नहीं रहने देê
तू कभी देख तो रोते हुए आकर मुझको
रोने में इक ख़तरा है तालाब नदी हो ज
इस पेड़ में इक बार तो आ जाए समर भी
न जाने कैसा मौसम हो दुशाला ले लिया
ऐ अँधेरे देख ले मुँह तेरा काला हो ग
एक न इक रोज़ तो होना है ये जब हो जाये
बस इतनी बात पर उसने हमें बलवाई लिक
muhajir hain magar ham ek duniya chhoR aaye hain
मुहाजिर हैं मगर एक दुनिया छोड़ आए
unn se miltay haien bichar jatay haien phir miltay haien
بڑی کڑواہٹیں ہیں اس لئے ایسا نہیں
دنیا کے سامنے بھی ہم اپنا کہیں جسے
Miyaan mein sher hoon sheron ki gurrahat nahin jaati
بس اتنی بات پر اس نے ہمیں بلوائی لک
Total Visit of All Shayari of Munawwar Rana : 14237