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Shri Nitish Kumar
Hon'ble Chief Minister of Bihar
 
E-Mail: cmbihar-bih@nic.in
Tel: 0612-2223886 (O)
0612-2224784 (O)
0612-2222079 (R)
 
Posted on: 05-11-2012  
 
विशेष दर्जा पिछड़े राज्यों का हक
 

विशेष दर्जा पिछड़े राज्यों का हक नीतीश कुमार ने कहा कि विशेष दर्जा की मांग को ले हम लंबी लड़ाई लड़ेंगे। राजनीतिक दलों को उन्होंने स्पष्ट संकेत दे दिया कि 2014 में केंद्र में उसी पार्टी की सरकार बनेगी जो हमारी मांग का समर्थन करेगी। उनके अनुसार सात सालों में हम आगे बढ़े हैं। दुनिया में इसकी चर्चा है। 

विशेष दर्जा पिछड़े राज्यों का हक में बिहार को देख उत्साह जगा है। यह कहा जा रहा है कि जब बिहार आगे बढ़ सकता है तो हम क्यों नहीं? लेकिन इसके बावजूद राष्ट्रीय औसत तक पहुंचने में 25 वर्ष लगेंगे। उन्होंने भीड़ से पूछा कि क्या हमारी युवा पीढ़ी इतना इंतजार कर सकती है। भीड़ ने काफी जोश में हाथ उठाकर कहा-नहीं। मुख्यमंत्री ने कहा-इसी कारण हम विशेष दर्जा की मांग कर रहे हैं। तरक्की करने का हर बिहारी का भी हक है। हम यह अधिकार लेकर रहेंगे। हम चाहते हैं कि दूसरे राज्यों के लोग काम करने यहां आएं। हम उनकी इज्जत करेंगे, क्योंकि देश में किसी को भी कहीं काम करने का अधिकार है। कुछ लोग कहते हैं कि जब सूबे में तरक्की हो रही है तो विशेष दर्जा की मांग क्यों? यह इसलिए कि हमने अपनी पात्रता सिद्ध की है। राशि खर्च करने की क्षमता सात गुना बढ़ाई है। आज देश में समावेशी विकास की सभी बातें करते हैं। सूबे की साढ़े दस करोड़ की आबादी को नजरअंदाज कर देश में समावेशी विकास कैसे होगा? जब सवा करोड़ बिहारियों के हस्ताक्षर के साथ जदयू का शिष्टमंडल प्रधानमंत्री से मिला तो उन्होंने विशेष दर्जा के सवाल पर अंतर मंत्रालयी समूह गठित किया। उसने अपनी रिपोर्ट में बिहार के पिछड़ेपन को स्वीकार किया, लेकिन विशेष दर्जा की मांग को खारिज कर दिया। हमारी मांग है कि इस सवाल पर केंद्र सरकार विशेषज्ञों की टीम गठित करे और सभी पिछड़े राज्यों को विशेष दर्जा दे। मांग पूरी नहीं की गई तो मार्च में दिल्ली के रामलीला मैदान में अगली रैली करेंगे। हम हाथ पर हाथ रख बैठे नहीं रहेंगे। उनके अनुसार केंद्र सरकार का तर्क है कि हम पर्वतीय राज्य नहीं हैं। ठीक है। मगर इसमें हमारा क्या कसूर है कि नेपाल से आने वाली नदियों का पानी हर साल हमारा सबकुछ बहाकर ले जाता है। सालाना निर्माण से ज्यादा बर्बादी हो जाती है। यह तो अंतर्राष्ट्रीय मसला है। इसमें हम क्या कर सकते हैं? हम पर्वतीय राज्य नहीं हैं, तो हमारे यहां समुद्र भी नहीं है। हमारा प्रदेश लैंड लाक्ड है। चारों तरफ से घिरा हुआ। ऐसे क्षेत्रों के लिए विशेष मानदंड होना ही चाहिए। उन्होंने कहा कि चार नवंबर बिहार के लिए ऐतिहासिक दिन है। 1974 में इसी दिन जेपी के नेतृत्व में विधानसभा एवं विधायकों का घेराव किया गया था। जेपी को पुलिस की लाठी लगी थी, जो तत्कालीन सरकार के ताबूत में आखिरी कील साबित हुई। आज भी हम अपने अधिकार के लिए खड़े हुए हैं। जिसे मदद करना चाहती है उसके लिए केंद्र सरकार बहुत रास्ते निकालती है, लेकिन बिहार के साथ बहाने किए जाते हैं। शरद यादव ने रैली को संबोधित करते हुए कहा कि जब लालकृष्ण आडवाणी उपप्रधानमंत्री थे, तब उन्होंने बिहार को हर मदद का भरोसा दिलाया था। सरकार का वचन सत्ता बदले के बावजूद कायम रहता है। परन्तु वर्तमान सरकार इसे भूल गई है। लेकिन प्रधानमंत्री और सोनिया जी देख लें कि आज रैली में पूरा बिहार खड़ा है। जेपी के नेतृत्व में जब बिहार खड़ा हुआ था तब इंदिरा गांधी जैसी ताकतवर नेत्री की सत्ता चली गई थी। बिहार ने हिन्दुस्तान बदला है। 74 में बदला था, फिर एक बार बदलेगा। शरद यादव ने विरोधियों पर भी कुछ इस अंदाज में टिप्पणी की-कुछ बनाने में जुटे रहते हैं तो कुछ टंग-घिच्छा बिगाड़ने में लगे रहते हैं। यूपीए सरकार में हुए विभिन्न घोटालों की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि 12 लाख करोड़ लूटा दिए गए। अगर एक लाख करोड़ भी बिहार को दे देते तो नीतीश कुमार के नेतृत्व में यह प्रदेश कहां से कहां चला जाता। जदयू के प्रदेश अध्यक्ष वशिष्ठ नारायण सिंह की अध्यक्षता में हुई इस रैली को विजय कुमार चौधरी, नरेंद्र सिंह, शिवानंद तिवारी, आरसीपी सिंह, डा.भीम सिंह, श्याम रजक, दामोदर रावत, वृषिण पटेल, परवीन अमानुल्लाह, अली अनवर, डा.मोनाजिर हसन, संजय झा, रंजन यादव, गुलाम रसूल बलियावी, प्रो. उषा सिंहा सहित अनेक नेताओं ने संबोधित किया। मंच पर एनके सिंह, नीतीश मिश्रा, ज्ञानेंद्र सिंह ज्ञानू, अर्जुन राय, खुर्शीद अनवर, चंदेश्र्वर प्रसाद चंद्रवंशी, डा.नवीन आर्या, छोटू सिंह, चंद्रभूषण राय सहित करीब चार सौ नेता उपस्थित थे। मुख्य प्रदेश प्रवक्ता संजय सिंह, प्रदेश प्रवक्ता नीरज कुमार एवं राजीव रंजन प्रसाद मंच के सामने व्यवस्था संभालने में लगे थे। जनसंकल्प करवाया। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने भी इस पर जनता की हामी ली। यह संकल्प यूं है- बिहार के लिए विशेष राज्य का दर्जा राज्य के दस करोड़ लोगों की आकांक्षा है और अधिकार रैली इसे अभिव्यक्त करने का माध्यम है। अत्यधिक पिछड़ेपन एवं संसाधन की कमी के बावजूद राज्य ने हाल के वर्षो में दोहरे अंकों का विकास दर हासिल किया, फिर भी विकास की खाई को पाट कर राष्ट्रीय औसत स्तर पर पहुंचने में अभी भी हमें 25 वर्ष लगेंगे। राज्य को विशेष दर्जा मिलने से केंद्र प्रायोजित योजनाओं में राज्यांश में कमी आएगी, इससे राज्य की अपनी राशि की बचत होगी जिससे और अधिक कल्याणकारी योजनाएं शुरू हो सकेंगी। निवेशकों को करों में छूट एवं वित्तीय रियायतें मिल सकेंगी जिससे अधिक निजी निवेश का रास्ता खुलेगा और राज्य के युवाओं के लिए भारी तादात में रोजगार के अवसर पैदा हो पाएंगे। पूर्वाग्रह से ग्रसित केंद्र ने संवेदनशून्य होकर हमारी वाजिब मांग को स्वीकार नहीं किया है। शुरू से हमारे साथ भेदभाव बरता गया है और हमारी हकमारी होती रही है। आज सभी बिहारी अपने प्रदेश को एक विकसित राज्य के रूप में देखना चाहते हैं। बिहार की आबोहवा अच्छी है, मिट्टी उपजाऊ है, पर्याप्त जल संसाधन है, लोग मेहनती हैं, युवा वर्ग उत्साही और मेधावी है। इस प्रकार बिहार में विकास के सभी अवयव उपलब्ध हैं किंतु अब तक बिहार को उसका वाजिब हक नहीं मिला है। केंद्र सरकार की लगातार उपेक्षा से बिहार, प्रति व्यक्ति आय तथा प्रति व्यक्ति निवेश से लेकर मानव विकास सूचकांक तक, विकास के सभी मापदंडों में राष्ट्रीय औसत से काफी नीचे है। अत: पिछड़ेपन से निकलकर विकास के राष्ट्रीय औसत स्तर को प्राप्त करने के लिए विशेष राज्य का दर्जा मिलना आवश्यक है। बिहार वैसे तो विशेष राज्य का दर्जा हेतु अधिकांश निर्धारित मानकों को पूरा करता है फिर भी यदि तकनीकी दृष्टिकोण से आवश्यक हो तो केंद्र सरकार को पुराने मानकों में परिवर्तन कर बिहार को विशेष श्रेणी के राज्य का दर्जा देना होगा, तभी बिहार के साथ न्याय हो सकेगा और देश के समावेशी विकास का सपना सही अर्थो में पूरा हो सकेगा। राज्य के चहंुमुखी विकास और नई पीढ़ी के उज्जवल भविष्य के लिए आइए हम सब आज 4 नवंबर, 2012 को इस ऐतिहासिक गांधी मैदान की अधिकार रैली में यह संकल्प लें कि इस हक की लड़ाई को व्यक्तिगत एवं सामूहिक रूप से यहां और हर जगह जारी रखेंगे जब तक कि हमें हमारा वाजिब हक नहीं मिल जाता है। भीड़ भी रहती है अनुशासित ऐसे अवसरों पर बिहार के खाते में बड़ी बदनामी रही है। चाहे सांस्कृतिक आयोजन का मोर्चा हो या फिर आयोजन के दिन भीड़ देख बौराया व उन्मादी हुआ मिजाज .., जदयू ऐसी बदनामियों से किनारे रहा। गांधी मैदान के अंदर और बाहर छोटे कारोबारियों का धंधा खूब चला। मुख्यमंत्री ने मनोरंजन के इंतजाम की सख्त मनाही कर रखी थी। यह मानी भी गई। शहर के भीतरी इलाकों से बाहर रखे बड़े वाहन, सबकुछ बड़ी सहजता से गुजर जाने का बड़ा कारण रहे। गांधी मैदान जाने वाली मुख्य सड़कों को छोड़ दें, तो शहर चलता रहा, भले उसकी गति जो हो। जदयू ने भीड़ के अनुशासन के बूते अपना सुशासन दर्शाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। वह इस पूरे आयोजन को शासन के चरित्र और इससे जुड़ी अपनी तमाम तरह की दावेदारी से जोड़कर चल रहा था। मंच (बड़े नेता), खुद को शांत व संयमित रखे था। आश्चर्यजनक रूप से आज नेताओं की टोली कटाक्ष व आरोप- प्रत्यारोप की राजनीति से दूर थी। सभी अपने मुद्दे पर केंद्रित थे-बिहार को विशेष राज्य का दर्जा। हां, एकाध नेताओं की जुबान जरूर फिसली। वे सामने बैठे लोगों में जोश भरने की नीयत से खून की नदियां बहाने की बात बोल गए। लेकिन उनके लिए शीर्षस्थ नेताओं की तनी भृकुटी ने बाद वालों को पूरी तरह लाइन पर रखा। बेशक, सुरक्षा व्यवस्था में ढेर सारे पुलिसकर्मी थे मगर वे अराजकता रोकने के नाम पर अराजक नहीं थे। रैली के सफल आयोजन के बाद जदयू के पाले में एक बड़ी बात आई है। यह प्रबंधन का गुण है। इसके कई निहितार्थ हैं; कई-कई विश्लेषण हैं। इसको कायम रखना खुद जदयू के लिए बड़ी चुनौती होगी। एक्जीविशन रोड से जुड़े गांधी मैदान के प्रवेश द्वार को बंद रखा गया था। उद्योग भवन और श्रीकृष्ण मेमोरियल हॉल के सामने वाले गेट को खोल दिया गया था। यहां पर झोला वालों की जांच भी हो रही थी। गांधी मैदान में जगह-जगह लगाए गए एलइडी स्क्रीन के चलते भी मंच के करीब जाने की आपाधापी नहीं थी। मंच के करीब न पहुंच पाए लोग इसी स्क्रीन के सामने बैठकर मंच की हरेक गतिविधि को देख रहे थे। कुछ देर के लिए स्क्रीन में खराबी आई। लोग मंच की ओर भागने लगे। लेकिन, खराबी दूर होते ही सब स्क्रीन के सामने आ गए। मौसम ने भी रैली का साथ दिया। कुछ देर के लिए धूप से परेशानी हुई। जल्द ही आसमान में बादल छा गए। ठंडी हवा चल रही थी। मुख्यमंत्री के भाषण से ठीक पहले लगा कि बूंदाबांदी हो जाएगी। बादल का एक टुकड़ा तैर रहा था। जल्द ही वह दूर चला गया। किसी भी रैली को समय पर समाप्त कराना बड़ी चुनौती होती है। आम तौर पर यह हो नहीं पाता है। लेकिन, अधिकार रैली में यह हुआ। रैली ठीक 10 बजे दिन में शुरू हुई। 2.15 में इसका समापन हो गया। मंत्रियों, सांसदों और जदयू के प्रकोष्ठ अध्यक्षों को बोलने के लिए दो मिनट का समय दिया गया था। कैलाशपति मिश्र पंचतत्व में विलीन ठाकुर, शाहनवाज हुसैन, राजीव प्रताप रूड़ी, अश्रि्वनी कुमार चौबे ने एयरपोर्ट पर मोदी की आगवानी की। मोदी के बाद लालकृष्ण आडवाणी के साथ अरुण जेटली, अनंत कुमार आए। इन्होंने स्व.मिश्र के पार्थिव शरीर पर माल्यार्पण किया। आडवाणी ने कहा कि कैलाश जी के निधन से हम सब मर्माहत हैं। उनका व्यक्तित्व बड़ा विशाल था। हमने एक सच्चा साथी खो दिया है। अरुण जेटली के अनुसार आज पार्टी जिस मुकाम पर है उसमें कैलाश जी की बड़ी भूमिका है। उन्होंने अपना पूरा जीवन पार्टी को दिशा देने में लगा दिया। अनंत कुमार व झारखंड के मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा ने कैलाश जी को अभिभावक बताया। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सर संघचालक मोहन भागवत व सर कार्यवाह सुरेश (भैयाजी) जोशी, सह सरकार्यवाह सुरेश सोनी, सर सहकार्यवाह दत्तात्रेय होसबाले ने भी गहरा शोक जताया है। जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष शरद यादव ने कैलाश जी के पार्थिव शरीर पर माल्यार्पण किया। परिवहन व सूचना एवं जनसंपर्क मंत्री वृषिण पटेल ने भी कैलाश जी के निधन पर गहरा शोक व्यक्त किया है। बहरहाल, कौटिल्य नगर से कैलाश जी की शवयात्रा प्रारंभ हुई। उनके पार्थिव शरीर को बिहार विधानमंडल, फिर भाजपा कार्यालय लाया गया। इस दौरान बिहार विधानपरिषद के सभापति अवधेश नारायण सिंह, सुखदा पांडेय, जनार्दन सिंह सिग्रीवाल, रामाधार सिंह (मंत्री), भाजपा के वरीय नेता रघुवर दास, प्रसन्न मिश्र, कीर्ति आजाद, किरण घई, यदुनाथ पांडेय, गोपाल नारायण सिंह, हृदय नाथ सिंह, लालमुनि चौबे, संजय मयूख, आदि मौजूद थे। दीघा घाट पर अंतिम संस्कार के समय मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी, लोजपा प्रमुख रामविलास पासवान समेत भाजपा-जदयू के कमोबेश तमाम वरीय नेता व ढेर सारे कार्यकर्ता थे। अधिकार रैली में कैलाश जी को श्रद्धांजलि, राजकीय शोक भी : जदयू की अधिकार रैली में कैलाशपति मिश्र को भावभीनी श्रद्धांजलि दी गई। शोक का प्रस्ताव जदयू के प्रदेश अध्यक्ष वशिष्ठ नारायण सिंह ने रखा। इससे पहले मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने अपने संबोधन में कहा कि बिहार की राजनीति में कैलाशपति मिश्र का बड़ा योगदान है। राज्य सरकार ने रविवार को राजकीय शोक घोषित किया है। मुख्यमंत्री के अनुसार कैलाश जी के अवसान से एक राजनीतिक युग का समापन हो गया। उन्होंने स्व. कर्पूरी ठाकुर के साथ मिलकर बिहार के निर्माण का संकल्प लिया था। यह भाजपा की नहीं, हम सब की क्षति है। हम सब मर्माहत हैं। जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष एवं एनडीए के संयोजक शरद यादव ने भी स्व. मिश्र को श्रद्धांजलि दी। उन्हें कद्दावर राजनेता बताया। इधर, राजकीय शोक के अंतर्गत सभी कार्यालयों पर फहरा रहे राष्ट्रीय ध्वज को झुका दिया गया। गुमराह कर रहा विपक्ष : कांग्रेस अध्यक्षों की मौजूदगी में हुई इस महारैली के जरिये कार्यकर्ताओं में जोश भरने की कोशिश की गई। आरोपों की बौछार के जवाब के लिए सोनिया-मनमोहन-राहुल ने अपने भाषणों के जरिये तर्को की ढाल और अस्त्र भी दिए। यूं तो मंच पर अन्य पदाधिकारी और कांग्रेस शासित राज्यों के मुख्यमंत्री भी मौजूद थे, लेकिन बोले सिर्फ यही तीन। रैली का संचालन कांग्रेस महासचिव व मीडिया विभाग के चेयरमैन जनार्दन द्विवेदी ने किया। सबसे आक्रामक और जोशीला भाषण सोनिया का रहा। उन्होंने विपक्ष पर नकारात्मक राजनीति का आरोप लगाते हुए परोक्ष रूप से भाजपा अध्यक्ष नितिन गडकरी पर तीखा तंज मारा और सिविल सोसाइटी के भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन व विपक्ष के कथित गठजोड़ की तरफ इशारा भी किया। उन्होंने कहा, जो लोग भ्रष्टाचार की बात कर रहे हैं वे खुद भ्रष्टाचार में डूबे हैं। जो दूसरों के लिए गढ्डा खोदता है, उसके लिए कुआं तैयार रहता है। कांग्रेस अध्यक्ष ने विपक्ष पर निर्वाचित सरकार और लोकतंत्र की बुनियाद कमजोर करने का आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि सरकार किसी भ्रष्टाचारी को नहीं छोड़ने वाली।

 
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