ग़ज़ल
फसाने को हक़ीक़त कह नहीं सकते ज़माने में,
बहुत ही फ़र्क़ होता है हक़ीक़त और फसाने में,,
हमेशा ज़िंदगी में हर क़दम पर बा-खबर रहना,
छुपा रहता है ग़म यारो खुशी के आशियाने में,,
भला वो हाले दिल ग़ैरों का कैसे जान पाएँगें,
मज़ा आता है जिनको दूसरों का दिल चुराने में,,
उन्हें भी हम कहें इंसान हरगिज़ ये नहीं होगा,
तरस आता नहीं जिनको किसी का खूं बहाने में.
खुदाये पाक तू हमको बचाना ऐसे लोगों से,
ज़रा भी दुख नहीं जिनको किसी का दिल दुखाने में,,
बिछाये फूल हम ने जिन की राहों में सदा यारो,
झिझक उन को नहीं होती ज़रा पत्थर उठाने में,,
‘सिराज’ उस को भला क्या साया-ए-गुरबत डराएगा,
हमेशा जो रहा करता है ग़म के शामियाने में..!
सिराज देहलवी 06.02.2015
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