देख रहा है दरिया भी हैरानी से
मैंने कैसे पर किया आसानी से
नदी किनारे पहरों बैठा रहता हूँ
कुछ रिश्ता है मेरा बहते पानी से
हर कमरे से धुप,हवा की यारी थी
घर का नक्शा बिगड़ा है मनमानी से
अब जंगल में चैन से सोया करता हूँ
डर लगता था बचपन में वीरानी से
दिल पागल है रोज पशीमा होता है
फिर भी बाज़ नहीं आता नादानी से
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