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Aalam Khurshid
 
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* लुत्फ़ हम को आता है अब फ़रेब खाने म *

लुत्फ़ हम को आता है अब फ़रेब खाने में

आज़माए लोगों को रोज़ आज़माने में

दो घड़ी के साथी को हमसफ़र समझते हैं

किस क़दर पुराने हैं , हम नए ज़माने में

एहतियात रखने की कोई हद भी होती है

भेद हम ने खोले हैं , भेद को छुपाने में

तेरे पास आने में आधी उम्र गुजरी है

आधी उम्र गुज़रेगी तुझ से दूर जाने में

ज़िन्दगी तमाशा है और इस तमाशे में

खेल हम बिगाड़ेंगे , खेल को बनाने में

कारवां को उनका भी कुछ ख्याल आता है

जो सफ़र में पिछड़े हैं , रास्ता बनाने में

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