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Aalam Khurshid
 
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* समुन्दर ! समुन्दर ! *

समुन्दर ! समुन्दर !

बता !

मुझ को क्या हो गया है 

मेरी प्यास ने

ये बहरूप कैसा भरा है

मैं अब

तेरी बे-अंत गहराइयों में

उतरना नहीं चाहता हूँ

तुझे बूंद-बूंद

अपने अंदर समोने की ख्वाहिश

फ़ना हो चुकी है

मेरी प्यास

शबनम के इक नन्हे क़तरे

ही से बुझ चुकी है .

समुन्दर समुन्दर !

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