ग़ज़ल
(आलम खुरशीद )
दिले-नादाँ भी क्या नादान अब होता नहीं है
सुना है इश्क में नुकसान अब होता नहीं है
किसी के वास्ते दुनिया को ठोकर मार देना
मुहब्बत के लिए आसान अब होता नहीं है
उजड़ कर जो कभी आबाद होता ही नहीं था
वही दिल है मगर वीरान अब होता नहीं है
सराए बन चुके हैं दिल, कोई भी आने वाला
हमेशा के लिए मेहमान अब होता नहीं है
ग़रज़ की शाख पर ही राब्तों के गुल खिले हैं
कोई रिश्ता बिला-उन्वान अब होता नहीं है
अज़ल से जंग के फरमान जारी हो रहे हैं
मुहब्बत का मगर ऐलान अब होता नहीं है
नई तहज़ीब ने 'आलम' अकीदे ही न बदले
जुनूं भी साहिबे - ईमान अब होता नहीं है
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१. राब्ता (राबिता)= संबंध , मेल-जोल , प्रेम व्यवहार
२. अज़ल = वह समय जब सृष्टि की रचना हुई .
३. अकीदत: = धर्म , श्रद्धा , मत . आस्था
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