आशिक़ी में है महवियत दरकार। राहते-वस्ल-ओ-रंजे-फ़ुरक़त क्या? न गिरे उस निगाह से कोई। और उफ़्ताद क्या, मुसीबत क्या? जिनमें चर्चा न कुछ तुम्हारा हो। ऐसे अहबाब, ऐसी सुहबत क्या? जाते हो जाओ, हम भी रुख़सत हैं। हिज्र में ज़िन्दगी की मुद्दत क्या? ****