ख़ुद को औरों की तवज्जुह [1] का तमाशा न करो
आइना देख लो, अहबाब [2] से पूछा न करो
वह जिलाएंगे तुम्हें शर्त बस इतनी है कि तुम
सिर्फ जीते रहो, जीने की तमन्ना न करो
जाने कब कोई हवा आ के गिरा दे इन को
पंछियो ! टूटती शाख़ों पे बसेरा न करो
आगही [3] बंद नहीं चंद कुतुब-ख़ानों [4] में
राह चलते हुए लोगों से भी याराना करो
चारागर! [5] छोड़ भी दो अपने मरज़ पर हम को
तुम को अच्छा जो न करना है, तो अच्छा न करो
शेर अच्छे भी कहो, सच भी कहो, कम भी कहो
दर्द की दौलते-नायाब [6] को रुसवा न करो
शब्दार्थ:
↑ ध्यान देना
↑ दोस्तों
↑ ज्ञान
↑ पुस्तकालय
↑ चिकित्सक
↑ अमूल्य / मुश्किल से मिलने वाली दौलत