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Abdul Ahad Saz
 
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* जागती रात अकेली-सी लगे *

जागती रात अकेली-सी लगे

ज़िंदगी एक पहेली-सी लगे

रुप का रंग-महल, ये दुनिया

एक दिन सूनी हवेली-सी लगे

हम-कलामी तेरी ख़ुश आए उसे

शायरी तेरी सहेली-सी लगे

मेरी इक उम्र की साथी ये ग़ज़ल

मुझ को हर रात नवेली-सी लगे

रातरानी सी वो महके ख़ामोशी

मुस्कुरादे तो चमेली-सी लगे

फ़न की महकी हुई मेंहदी से रची

ये बयाज़ उस की हथेली-सी लगे

 
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