* मेरी नज़्म' फ़र्ज़े सुखन ' के तीन बं *
मेरी नज़्म' फ़र्ज़े सुखन ' के तीन बंद
मैं इक हकीर सा शायर हूँ फिर भी कहता हूँ
हरेक अरूज़ से बढ़कर है दर्द इन्सां के
फ़क़त शराब पे ,साकी पे शेर कहना तो
मेरी नज़र में तमाशे हैं ज़हने उरयां के
सुखन का फ़र्ज़ कसीदा ए कज कुलाह नहीं
सुखन का फ़र्ज़ तो इन्सान की हिमायत है
वो शेर जिसमे न दर्दे जहाँ की खुशबू हो
मेरी नज़र में तो उस शायरी पे लानत है
हैं इक तरफ ये रिवायत के कुहना क़स्र तेरे
और इक तरफ मेरी इंसानियत के आंसू हैं
सड़क पे बिखरा हुआ खून कि अरूज़ तेरे
बता दे आज तो शायर कि किस तरफ तू है
ARTH
AROOZ.. RULES OF GHAZAL AND GRAMMER
ZAHNE URYA.N ..NAKED MIND
QASEEDA E KAJ KULAAH .. EULOGY OF THE KINGS
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SAHAAB
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