मेरी बला को हो, जाती हुई बहार का ग़म। बहुत लुटाई हैं ऐसी जवानियाँ मैंने॥ मुझीको परदये-हस्ती में दे रहा है फ़रेब। वो हुस्न जिसको किया जलवा आफ़रीं मैंने॥ ****