मेरी बेख़ुदी है उन आँखों का सदका़। छलकती है जिन से शराबे-मुहब्बत॥ उलट जायें सब अक़्लो-इरफ़ाँ की बहसें। उठा दूँ अभी पर नक़ाबे-मुहब्बत॥ ****