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Ali Sardar Jafri
 
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* एक जू-ए-दर्द दिल से जिगर तक रवाँ है आ& *
एक जू-ए-दर्द दिल से जिगर तक रवाँ है आज 
पिघला हुआ रगों में इक आतिश-फ़िशाँ है आज 

लब सी दिये हैं ता न शिकायत करे कोई 
लेकिन हर एक ज़ख़्म के मूँह में ज़बाँ है आज 

तारीकियों ने घेर् लिया है हयात को 
लेकिन किसी का रू-ए-हसीं दर्मियाँ है आज 

जीने का वक़्त है यही मरने का वक़्त है 
दिल अपनी ज़िन्दगी से बहुत शादमाँ है आज 

हो जाता हूँ शहीद हर अहल-ए-वफ़ा के साथ 
हर दास्तान-ए-शौक़ मेरी दास्ताँ है आज 

आये हैं किस निशात से हम क़त्ल-गाह में 
ज़ख़्मों से दिल है चूर नज़र गुल-फ़िशाँ है आज 

ज़िन्दानियों ने तोड़ दिया ज़ुल्म का ग़ुरूर 
वो दब-दबा वो रौब-ए-हुकूमत कहाँ है आज
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