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Ali Sardar Jafri
 
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* मैं हूँ सदियों का तफ़क्कुर मैं हूæ *
मैं हूँ सदियों का तफ़क्कुर मैं हूं क़र्नों का ख़्याल, 
मैं हूं हमआग़ोश अज़ल से मैं अबद से हमकिनार
 
मेरे नग़्मे क़ैदे-माहो-साल से5 आज़ाद हैं, 
मेरे हाथों में है लाफ़ानी6 तमन्ना का सितार। 
 
नक़्शे-मायूसी में भर देता हूं उम्मीदों का रंग, 
मैं अ़ता8 करता हूं शाख़े-आरजूं को बर्गो-बार
 
चुन लिए हैं बाग़े-इन्सानी से अरमानों के फूल, 
जो महकते ही रहेंगे मैंने गूँथे हैं वो हार। 
 
आ़र्ज़ी जलवों को दी है ताबिशे-हुस्ने-दवाम
मेरी नज़रों में है रोशन आदमी की रहगुज़ार
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