चाह--- नज़्म
हम को भी मंत्री ब ना भगवान ,
ताकि अपने भी पूरे हों अरमान ।
हम भी तन्ख्््वाहें ख़ूब मोटी पायें ,
मन्त्रालय में चाहे जायें न जायें ।
दुगने तन्ख्वाह से हों भत्ते भी ,
हो जो सारे के सारे टैक्स फ़्री ।
करदे भगवान हम पे भी कृपा ,
मुफ़्त में खाएँ पैसा जनता का ।
मुफ़्त इक बंगला मय पहरेदार ,
और इक लाल बत्ती वाली कार ।
मुफ़्त हो सैर आसमानों की ,
मुफ़्त हों फ़ोन ,बिजली- ओ- पानी ।
इतने पैसे कमीशनों से मिलें ,
शादियों में करोड़ों ख़र्च करें।
हर बड़े शहर में हो इक बंगला ,
जिस में बैठा दें अपना इक साला ।
अपनी कृपा से जो ये सब हमें दें ,
हम भी सोने से आप को मढ़ दें ।
आलिया तक़वी
Alia Taqvi
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