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Anwar Suhail
 
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* परदेसी की घरवाली ललिया *
 

परदेसी की घरवाली ललिया
परदेसी के रहते
जान नहीं पाई दुनियादारी
लेकिन विधवा होते ही
उसने सीख ली
चील-गिद्धों के बीच
जीने की कला!

वैसे भी कहां जान पाती हैं
संसार को महिलाएं
जब तक रहती हैं
बेटी, पत्नी, मां
होने पर विधवा ही
उन्हें पता चलता है
कि कितना पराश्रित जीवन था उनका

विधवा ललिया को
जेठ, देवर और ससुर ने
समझाया भी
और फिर धमकाया बहुत
कि अकेली नार
अनपढ़ गंवार
कैसे कर पाएगी
कोयला खदान में नौकरी

ललिया नहीं थी कमज़ोर
जानती थी वह
यदि उसने मानी हार
बन जाएगी
दर-दर की भिखारन और लाचार
अनाथ बच्चों का मुंह देख
पति परदेसी की जगह
ललिया ने ली
खदान में अनुकम्पा-नियुक्ति!

लम्बा सा घूंघट लिए
ललिया ने सम्भाला
बड़े साहब का आॅफिस में काम
बाबुओं, चपरासियों, कामगारों के
इशारों, चुहलबाजियों से परेशान
एक दिन उसने घूंघट को दी तिलांजलि
और एक नई ललिया ने लिया जन्म

अब ललिया किसी से नहीं शर्माती
किसी से नहीं घबराती
एक दिन उसने की बड़े साहब से बात
और सीखने लगी वर्कशाप में
ग्राइंडिंग मशीन का काम
अब ललिया नहीं है चपरासन
ललिया है एक मेकेनिक
उसने खरीद ली है एक स्कूटी
और ज़माने को ठेंगे पर रख
स्वावलम्बी ललिया
काम निपटाकर
अपने बाल-बच्चों के पास
स्कूटी से उड़ जाती है फुर्र….
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