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Anwar Suhail
 
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* क्रान्ति या भ्रान्ति मजमा जुटाना *
क्रान्ति या भ्रान्ति मजमा जुटाना 
बहुत आसान है 
क्योंकि मजमे का
कोई मज़हब नही होता 
कोई जात नही होती 
कोई विचारधारा नही होती
मजमा तो जूता लेता है मदारी 
बजाकर डुग-डुगी, डमरू 
नचाकर बन्दर-भालू
दिखाकर बाजीगिरी 
मजमा होता है सिर्फ bheed 
मजमा पैदा नही करता क्रान्ति 
मजमे से बढ़ती है भ्रान्ति 
मजमा अकारण खुश होकर हंसने लगता है
मजमा तालियाँ पीटने का अभ्यस्त होता है 
मजमे के पास नही होता दिल-दिमाग 
मजमे का अपना कोई होता नही चरित्र 
मजमे को देख किसी क्रान्ति का आंकलन मत कर लेना दोस्त 
मजमा बड़ी आसानी से बिखर जाता है
मजमे में नही होती प्रतिरोध की क्षमता 
मजमे में नही होती हिम्मत 
नही होती मजमे में 
एक मुट्ठी में तब्दील होने की ख्वाहिश 
एक नारे में बदलने की आकांक्षा 
एक निजाम बदलने की ताक़त....
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