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Arsh Malsiyani
 
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* गो फ़स्ले-ख़िज़ाँ है फिर भी तो कुछ  *
गो फ़स्ले-ख़िज़ाँ है फिर भी तो कुछ फूल चमन में बाक़ी हैं,
ऐ नंगे-चमन तू इस पर भी काँटों का हार पिरोता है?

अंजामे-अमल की फ़िक्र न कर, है ज़िक्र भी इसका नंगे-अमल,
जो करना है तुझको कर ले, वोह होने दे जो होता है

तूफ़ाने-मुसीबत तेज़ सही, लेकिन यह परेशानी कैसी?
कश्ती को बीच समन्दर में क्यों अपने आप डुबोता है?
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