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Atul Ajnabi
 
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* करम है उसका कोई बद्दुआ नहीं लगती *
करम है उसका कोई बद्दुआ नहीं लगती
मेरे चिराग जलें तो हवा नहीं लगती
तुम्हारे प्यार की ज़ंजीर में बंधा हूँ मैं
सज़ा ये कैसी मिली है सज़ा नहीं लगती
किसी से प्यार करो और तजरुबा कर लो
ये रोग ऐसा है जिसमें दवा नहीं लगती
बस एक लम्हा सभी कुछ बदल के रख देगा
किसी को मौत की आहट पता नहीं लगती
ये ज़िंदगी जो तुम्हारी नज़र में कुछ भी नहीं
मेरी निगाह से देखो तो क्या नहीं लगती
फकीर सारे जहाँ को दुआएं देते हैं
बस इक हमारे ही दर पर सदा नहीं लगती
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