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Behzad Lucknawi
 
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* हमें किस तरह भूल जायेगी दुनिया *
हमें किस तरह भूल जायेगी दुनिया
कि ढूँढे से हमसा ना पायेगी दुनिया

मुझे क्या खबर थी कि नक्श-ए-वफ़ा को
बिगाड़ेगी दुनिया, बनाएगी दुनिया

मोहब्बत की दुनिया में खोया हुआ हूँ
मोहब्बत भरा मुझको पायेगी दुनिया

हमें खूब दे फरेब-ए-मोहब्बत
हमारे ना धोके में आयेगी दुनिया

क़यामत की दुनिया में है दिल-फरेबी
क़यामत में भी याद आयेगी दुनिया

रुला दूँ मैं बह्ज़ाद दुनिया को खुद ही
यह मुझ को भला क्या रूलायेगी दुनिया
*****
 
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