जुल्फ में तेरी कटी हर शाम है
अब सिवा तेरे कहां आराम है
जाम तो खाली सभी मैंने किये
तिश्नगी नाहक हुई बदनाम है
जख्म जो तूने छुआ मेरा, लगा
अब यहां आराम ही आराम है
रोशनी तो थी यहां होनी मगर
गुम अंधेरों में सिसकती शाम है
रात के सोए अभी जागे नहीं
वो जो लाए सुब्ह का पैगाम है
- बृजेश नीरज