चाहत
देखा गुंचो को सरनिगूँ तो समझा
है चहार सम्त तेरे बांकपन की बात
वो माह भी इधर से नहीं गुजरा
कुछ खास है तेरे हुस्न की बात
तेरी चाहत में इस कदर खो गए कि
नहीं हो सकती किसी इंकलाब की बात
तेरी जुल्फों में दम तोड़ना बेहतर
क्यों करें हम दारों-दसन की बात
तेरे जज्ब-ए- अमज़द का असर या और
हर तरफ है मेरी रूसवाइयों की बात
- बृजेश नीरज
सरनिगूँ - सिर झुकाए हुए
चहार सम्त - चारों ओर
माह – चाँद
दारों-दसन - सूली के तख्ते और फंदे
जज्ब-ए-अमज़द - हौसला अफज़ाई
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