बौने
हुस्न में जज्ब-ए- अमज़द ही नहीं
या हमें आपकी चाहत जो नहीं
जिधर भी जाइए अनजाने चेहरे हैं
किसी से मिलने की फुर्सत जो नहीं
जब भी गुजरो धुंध सी दिखती है
कोहरा होगा चूल्हे का धुंआ तो नहीं
दिलों की तरह बौने हो गये पौधे
इस शहर में कोई बागीचा जो नहीं
आपकी बातों में ही मजा आता है
कुछ और सुनने की आदत जो नहीं
ईमान वाला है सुना तो है लेकिन
वो आदमी अजायबघर का तो नहीं
बर्दाश्त कर लो तुम भी चुपचाप बैठो
लोगों में बोलने की हिम्मत जो नहीं
गहराते साये का खौफ सा दिल में
यहां मशाल जलाने को जगह तो नहीं
- बृजेश नीरज