धुंआ
हर तरफ ये अंधेरा क्यूं है
ये चांद आज पीला क्यूं है
गोशे में सिमटकर सो जाऐंगे
धरती का ये गलीचा क्यूं है
चूल्हे की आग पड़ गयी ठंडी
फिर हर तरफ धुंआ क्यूं है
कितने कलंक जी रहे हैं हम
फिर ये माथे पर टीका क्यूं है
ग़र आज़ाद हो गए हैं हम
तो कलम पर बंदिश क्यूं है
- बृजेश नीरज
Brijesh Kumar Singh
65/44, Shankar Puri,
Chhitwapur Road,
Lucknow
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