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Dipti Mishra
 
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* वो नहीं मेरा मगर उस्से मुहब्बत ह *
ग़ज़ल

वो   नहीं   मेरा  मगर  उस्से  मुहब्बत   है  तो  है
ये  अगर रस्मों -  रिवाजों  से  बग़ावत  है  तो  है

सच को मैने सच कहा,जब कह दिया तो कह दिया
अब  ज़माने  की  नज़र  में  ये   हिमाक़त है तो  है 

जल  गया परवाना  गर तो  क्या  ख़ता है शम्मा की
रात भर जलना- जलाना उसकी  क़िस्मत  है  तो  है 

दोस्त   बन   कर  दुश्मनों  सा  वो   सताता   है   मुझे   
फिर भी उस ज़ालिम पे मरना अपनी फ़ितरत है तो है
 
कब  कहा  मैनें की वो  मिल जाए  मुझको , मैं  उसे 
ग़ैर   ना  हो  जाए  वो  बस  इतनी  हसरत है  तो  है 

दूर  थे  और   दूर  हैं  हर   दम  ज़मीनो  - आसमाँ
दूरियों  के  बाद  भी   दोनों   में   क़ुर्बत   है  तो  है

दीप्ती मिश्र  
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