* मैं घुटने टेक दूँ इतना कभी मजबूर *
ग़ज़ल
मैं घुटने टेक दूँ इतना कभी मजबूर मत करना
खुदाया थक गई हूँ पर थकन से चूर मत करना
तुम अपने आपको मेरी नज़र से दूर मत करना
इन आँखों को खुदा के वास्ते बेनूर मत करना
मैं खुद को जानती हूँ मैं किसी की हो नहीं सकती
तुम्हारा साथ गर मागूँ तो तुम मंज़ूर मत करना
यहाँ की हूँ वहाँ की हूँ ख़ुदा जाने कहाँ की हूँ
मुझे दूरी से क़ुर्बत है ये दूरी दूर मत करना
न घर अपना, न दर अपना, जो कमियाँ हैं वो कमियाँ हैं
अधूरेपन की आदी हूँ मुझे भरपूर मत करना
दीप्ति मिश्र
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