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* जिससे तुमने ख़ुद को देखा ,हम वो एक न *
ग़ज़ल
जिससे तुमने ख़ुद को देखा ,हम वो एक नज़रिया थे
हम से ही अब क़तरा हो तुम ,हम से ही तुम दरिया थे
सारा - का - सारा खारापन हमने तुम से पाया है
तुमसे मिलने से पहले तो , हम एक मीठा दरिया थे
मखमल की ख्वहिश थी तुमको ,साथ भला कैसे निभता
हम तो संत कबीरा की झीनी सी एक चदरिया थे
अब समझे ,क्यों हर चमकीले रंग से मन हट जाता था
बात असल में ये थी , हम ही सीरत से केसरिया थे
जोग लिया फिर ज़हर पीया , मीरा सचमुच दीवानी थी
तुम अपनी पत्नी, गोपी और राधा के सांवरिया थे
दीप्ति मिश्र
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