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Ehteram Islam
 
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* कुछ तो कमरे में गुजर होगा हवा का पा *
कुछ तो कमरे में गुजर होगा हवा का पागल
खिडकियां खोल की है हब्स बला का पागल 

उसकी बकवास में होती है पते की बात 
कभी कर दे न कोई तेज धमाका पागल

क्यों बनाने पे तुला है तू कोई ताजमहल 
हाथ कटवाएगा क्या तू अपनी कला का पागल 

खैर हो आज निकल आया है घर से बाहर 
अपने हाथों में लिए अग्नि शलाका पागल

हर इमारत से लपकते हैं घृणा के शोले
किसपे फहराएगा तू प्रेम पताका पागल

तूने सोचा ही कभी अपने लिए कुछ भी कभी 
क्यों न ठहराएं तुझे लोग सदा का पागल 

बात बस यही है की अन्य्याय नहीं सह पाटा 
सभी कहते हैं जिसे दुष्ट लड़ाका पागल 
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