* बोल सखी ! क्यूँ चाहत का अंजाम जुदाई *
बोल सखी ! क्यूँ चाहत का अंजाम जुदाई
पगली ! इसी लिए तो रोती है शहनाई....
बोल सखी ! ये अँखियाँ काहे सपने देखें
पगली ! इनमें आन बसा है इक सौदाई
बोल सखी ! क्यूँ बेकल बेकल सी फिरती हूँ
पगली ! दिल है तेरा लेकिन प्रीत पराई ....
बोल सखी! क्यूँ दिल हाथों से निकला जाए
पगली ! उसके कहने में तू क्यूँ थी आई....
बोल सखी ! ये प्रीत का शोला भड़का कैसे
पगली तेरे काजल ने ये आग लगाई......
बोल सखी ! क्यूँ पैर नहीं धरती पर टिकते
पगली ! उस ने पायल जो तुझ को पहनाई
बोल सखी ! बेताल हुई है कब से धड़कन
पगली ! जब से उस ने तेरी नींद चुराई
बोल सखी ! क्यूँ शहर में जाकर भूल गया वो
पगली ! तेरा प्रीतम लगता है हरजाई ****
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