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Jan Nisar Akhtar
 
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* हैरत कदा-ए-हुस्न कहाँ है अभी दुनिय *
सौ चांद भी चमकेंगे तो क्या बात बनेगी 
तुम आये तो इस रात की औक़ात बनेगी 

उन से यही कह आये कि हम अब न मिलेंगे 
आख़िर कोई तक़रीब-ए-मुलाक़ात बनेगी 

ये हम से न होगा कि किसी एक को चाहें 
ऐ इश्क़! हमारी न तेरे साथ बनेगी 

हैरत कदा-ए-हुस्न कहाँ है अभी दुनिया 
कुछ और निखर ले तो तिलिस्मात बनेगी 

ये क्या के बढ़ते चलो बढ़ते चलो आगे 
जब बैठ के सोचेंगे तो कुछ बात बनेगी 
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