* बर्फ़ सीने की ये किस दर्द ने पिघला *
न शरर है न घटा और न पुरवाई है
बर्फ़ सीने की ये किस दर्द ने पिघलाई है
बे ख़बर झाँकने वाले थे सभी डूब गऐ
उसकी आँखों में किसी झील सी गहराई है
मुझ को आता है संभलना मेरे साक़ी फिर भी
मैं अगर बहका तेरी बज़्म की रुस्वाई है
लब पे हो उसके मेरा नाम तो लगता है मुझे
उसकी आवाज़ कोई गूँजती शहनाई है
एक अहसास ने बरसों से जगाया इतना
चश्मे वीरान से अब नींद भी घबराई है
चाँदनी देख के हर ज़र्रे की आँखों में फ़ुग़ाँ
मेरे आँगन में उतरते हुए कतराई है
तूने देखा ही नहीं आँख मिलाकर मुझ से
कितनी आँखों में तेरे दर्द की राअनाई है
मैं अकेला नहीं वीराने में दुनिया के हया॔त
हम सफ़र मेरी भी इस दश्त में तन्हाई है
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