* हम सपनों के हार पिरोने वाले हैं *
हम सपनों के हार पिरोने वाले हैं
बोझ ग़मों का सर पे ढोने वाले हैं
बस ऊपर से ख़ाली - ख़ाली दिखते हैं
हम अन्दर से चाँदी - सोने वाले हैं
ख़ुश फ़हमी तूफ़ानों को हम देते हैं
हम ख़ुद अपनी नाव डुबोने वाले हैं
दिल के राज़ छुपा देते हैं ग़ज़लों में
हम लफ़्ज़ों की भीड़ मे खोने वाले हैं
उन से नज़र मिले तो दिखती है जन्नत
क़ातिल हैं या जादू - टोने वाले हैं
शबे हिज्र में ख़ुआबों की हम आढ़ लिये
अपनी आँखें खोल के सोने वाले हैं
करके तर्क वफ़ा वो भी अपना तकिया
शब भर अशकों से भिगोने वाले हैं
इश्क़ से पहले हम भी कारामद थे हया॔त
अब हम ग़ालिब जैसे होने वाले हैं
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