* अजनबी बन के हम इक पल को जुदा हो जाऐं *
ग़ज़ल
अजनबी बन के हम इक पल को जुदा हो जाऐं
इशक़े नादाँ के सबब अपनी सज़ा हो जाऐं
रूठ जाना भी मुहब्बत की अलामत है सनम
इस बहाने ही सही हम भी ख़फ़ा हो जाऐं
आओ कुछ हम भी ज़माने का भरम रखते हैं
क़र्ज़ दुनिया के भी कुछ हम से अदा हो जाऐं
इतनी मत शर्त लगा मुझ पे वफ़ादारी की
के मेरे अहदे वफ़ा मेरी जफ़ा हो जाऐं
मेरी उल्फ़त में न तुम ख़ुद को गुनहगार करो
मेरे जज़्बात भी मेरी ही दवा हो जाऐं
न मिलें राह में बस चुपके से सपनों में मिलें
यह फ़रेबी सही दुनिया की दुआ हो जाऐं
बुत्तराशी से तख़य्युल की हुँ मैं ख़ौफ़ज़दा
ज़हन से तेरे तसव्वुर न फ़ना हो जाऐं
आओ लिखते हैं हया॔त एक नया तर्ज़ ए वफ़ा
भूलकर दर्दे जिगर दिल से ग़ना हो जाऐं
जावेद हया॔त |