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* मैं पलकें बिछाये तेरी राह में, *
गीत
मैं पलकें बिछाये तेरी राह में,
छोड़ कर सारी दुनिया तेरी चाह में
दिल में उम्मीद-ए-वस्ले मुहब्बत लिये,
अपना दिल थाम के यूँ ही बैठा रहा
कब हुई रात और कब का सूरज ढला,
मुझ को अहसास इतना कहाँ था भला
चूर था सब बदन, आसरे में मगर,
एक गुलफ़ाम के यूँ ही बैठा रहा
रात भर यह सितारों ने चरचा किया,
मुझ को ग़म इस क़दर आज किसने दिया
के मैं कब से खुले आसमाँ के तले,
बिना आराम के यूँ ही बैठा रहा
यह था मालूम दिल कुछ सभंल जायगा,
मैयकशी का अगर दौर चल जायगा
मैं तेरी याद में गुम रहा इस क़दर,
के बिना जाम के यूँ ही बैठा रहा
मेरी पहले भी शामें हुई थीं उदास,
आज फिर तुम ने तोड़ी मेरे दिल की आस
तो मैं अश्क-बार आँखों में मन्ज़र लिये,
अपनी हर शाम के यूँ ही बैठा रहा
मैं तेरे आसरे में रहा किस क़दर,
मुझ को होती भला किस तरह यह ख़बर
ऐसा बेख़ुद हुआ के कई रोज़ तक,
अपना दिल थाम के यूँ ही बैठा रहा
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