* मुझ को गुलशन में मिले और न सुराबों *
मुझ को गुलशन में मिले और न सुराबों में मिले
वह फ़साने जो मुहब्बत की किताबों में मिले
इश्क़ के रंग से सनम हुस्न की ज़ैबाइश कर
यह वो रंग है जो हिना में न गुलाबों में मिले
और बढ़ जाऐगी मैख़ाने की अज़मत साक़ी
तेरी आँखों का नशा काश शराबों में मिले
जब भी मिलती है जुदा होके भुला देती है
यूँ ही मिलना है अगर मुझ से तो खुआबों में मिले
दूर जब हो तो तसव्वुर में बसी रहती है
मुझ को राहत तेरी फ़ुर्क़त के अज़ाबों में मिले
तोड़ कर अहदे-वफ़ा देखना होगा तुझ को
तू जो चाहे के मेरा नाम ख़राबों में मिले
कर दूँ इन्कार ख़ुदा से न दे जन्नत मुझ को
रोज़े-महशर जो बिना तेरे सवाबों में मिले
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