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Jawaid Hayat
 
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* बढ़े फ़ासले जब तेरी दिलबरी में *
बढ़े फ़ासले जब तेरी दिलबरी में
अंधेरे अयाँ हो गये रोशनी में
मुझे तेरे ग़म ने दिया हौसला वह
के ग़म ढूंडता हूँ मैं हर इक ख़ुशी में
ख़ुदी में जो थी वस्ल की इक तमन्ना
मेरी जुस्तजु बन गई बेख़ुदी में
मुझे जो तेरे दार तक लेके आया
सिहर था कोई तेरी ख़न्दह लबी में
तमस्ख़र उड़ाया मेरी ही वफ़ा ने
बदल कर मेरा इश्क़ दीवानगी में
छुपा कर तेरे इश्क़ को मैं तुझी से
सुकूँ ढूँडता रह गया तिशनगी में
रहा मुद्दतों आमना सामना भी
मिटे न कभी फ़ासले ज़िन्दगी में
हया॔त एक रसता था पुरख़ार जिसपर
में चलता रहा वक़्त की रहबरी में
जावेद "हयात”
 
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