* हाथों को मेरे ख़ून से न दाग़दार कर *
ग़ज़ल
हाथों को मेरे ख़ून से न दाग़दार कर
करना है अगर क़त्ल तो आँखों से वार कर
ज़ख़मों को मेरे दिल के अगर गिन न पाये तू
गुज़रे जो तेरे साथ वह लम्हे शुमार कर
कर लेना अपने घर के चिराग़ों मे रोशनी
मैं दूंगा दिल की आग तुझे कुछ उतार कर
वह जानता है अज़मते – दर्दे - निहाँ है क्या
रक्खे हैं जिसने आँख में आँसू संवार कर
तेरे लिये तो मौत से लढ़ जाऊँगा मगर
ऐ ज़िन्दगी तू भी तो मेरा इन्तेज़ार कर
ज़ाया न कर हयात किसी एक के लिये
करना है अगर प्यार तो ख़ल्क़त से प्यार कर
जावेद हया॔त
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